*”किसान उत्पादक संगठन” ( एफ पी ओ )*

किसान उत्पादक संगठन (एफ पी ओ )

किसान उत्पादक संगठन : भारत एक कृषि प्रधान देश है आज भी यहां की 56 प्रतिशत जनसंख्या कृषि आधारित उद्योग धंधों से जीवन यापन करते हैं खेती की भू जोत छोटी होने , सार्वजनिक संसाधनों तथा बड़े बाजारों तक पहुंच नही होने के कारण खेती घाटे में है कई बार प्राकृतिक आपदाओं द्वारा फसल खराब होने के कारण कृषि महाजनों और मध्यस्थों पर निर्भर होकर उनके शोषण का शिकार हो जाती है इनसे छुटकारा और खेती लाभप्रद बनाने के लिए छोटे और सीमांत किसानों को संगठित होकर समूह में खेती करने को किसान उत्पादक संगठन कहते है किसान उत्पादक संगठन द्वारा पंजीकृत संस्था को किसान उत्पाद कम्पनी कहते हैं

किसान उत्पादक संगठन के उद्देश्य:

किसान उत्पादक संगठन कम्पनी एक्ट 1956 के संसोधित एक्ट 2013 के ix(a) के तहत पंजीकृत होता है इसे सहयोगी समिति, कंपनी या सोसायटी के रूप में भी पंजीकृत किया जा सकता है। यह किसानों की एक संवैधानिक संस्था है लघु, सीमांत और भूमिहीन किसान इसके शेयर धारक सदस्य होते हैं इसमे 10-20 किसान परिवारों का एक किसान उत्पादक समूह(FIG) बनाकर ऐसे सभी किसानों का समूह एक साथ मिलकर एक पंजीकृत संस्था बनाई जाती है। यह कृषि से सम्बन्धित समस्याओं के लिए समाधान एवं किसानों के उत्थान के लिए काम करता है इसका मुख्य उद्देश्य खेती की लागत कम करके उत्पादन और आय में वृद्धि करना है किसान उत्पादक संगठन किसानों की माँग के अनुसार उच्च गुणवत्ता की खाद बीज दवाईयां और कृषि में आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराना और कृषि उत्पाद को एकत्रित करना उसकी साफ सफाई करना , ग्रेडिंग करना , पैकेजिंग करना , प्रसंस्करण करना और निर्यात करना मुख्य कार्य है यह कृषि और किसानों से संबंधित कार्यों एवं योजनओं का लाभ दिलाने में सहयोग के लिए काम करता है और लघु, सीमांत और भूमिहीन किसानों को एक मंच प्रदान करना है ताकि वे अपनी उपज की लागत कम करके अधिक लाभ कमा सकते है। 

=>किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) द्वारा ग्रामीण विकास और कृषि में सुधार : 

भारत में कृषि क्षेत्र के विकास और किसानों की आर्थिक स्थिति का एक समूह माध्यम है। यह संगठन किसानों को एकजुट होकर उनके उत्पादन, विपणन और वितरण में मदद करता है। यह केवल किसानों से जुड़ने का काम करता है, बल्कि उन्हें बाजार का अनावरण करने के लिए तैयार करता है। 

=>उत्पादक संगठन (एफपीओ) की विशेषताएं :

  (i)  सदस्यता :-  एक किसान परिवार में  केवल एक किसान सदस्य बन सकता हैं             (ii) स्वायत्तता :- यह स्वतंत्र संगठन होते हैं जो किसानों के हित में तर्कसंगत निर्णय लेते हैं। (iii) लाभ का वितरण :- सदस्य किसानों को का लाभ उसके सदस्यों के बीच के तरीकों से रखा जाता है।                            (iv) खेती की  सीमा :- आमतौर पर ऐसे किसान शामिल होते हैं जिनके पास छोटे और सीमान्त  भूमि क्षेत्र होते हैं। 

=>  किसान उत्पादक संगठन के लाभ :

**बेहतर बाजार संपर्क:** किसान उत्पादक संगठन को बाजार में सीधे संपर्क स्थापित करने में मदद मिलती है। यह किसानों मध्यस्थतथा की भूमिका कर किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य दिलाने में सहायता प्रदान करता है।  **संयुक्त संसाधन उपयोग:** यह किसानों को एकजुट करने वाला माध्यम है इससे  किसान उच्च गुणवत्तता के खाद, बीज दवाई  और अन्य संसाधनों को सामूहिक रूप से खरीदा जा सकता है, जिससे लागत कम होती है।                   **वित्तीय सहायता:** एफ पी ओ के तहत किसानों को बैंकों और वित्तीय निवेशकों से आसान ऋण ,अन्य वित्तीय और कृषि योजनाओं का लाभ दिलाने में सहायता मिलती है।  **तकनीकी ज्ञान और प्रशिक्षण:** किसान उत्पादक संगठन के सदस्यों को खेती की नई तकनीकी की जानकारीयों,  भ्रमणों एवं प्रशिक्षणों द्वारा खेती नवाचार में कम लागत पर अधिक उत्पादन के उद्देश्य से प्रशिक्षित किया जाता है l                          **जोखिम प्रबंधन:**सामूहिक प्रयास के कारण किसान संगठन प्राकृतिक आपदाएं, बाजार में उतार-चढ़ाव और अन्य खतरों का सामना करने में सक्षम बनते हैं। 

=> किसान उत्पादक संगठन की चुनौतियाँ :

**निर्देशकों की कमी:** Board of Directors (निदेशक मण्डल) द्वारा कम समय देकर सेवा भावना का अभाव होना।          **कमजोर प्रबंधन कौशल:** संगठनों को प्रशिक्षण प्रबंधकों की कमी का सामना करना पड़ता है। ** सरकार की अनदेखी** सरकार द्वारा एफ पी ओ स्थापित योजना में खेती से अनजान C.B.B.O (क्लस्टर आधारित व्यवसाय संगठन ) पंजीकृत करना अर्थात खेती और किसान के बारे में स्वयं कुछ नही जानता है वह किसानो का भला करने में असमर्थ है लेकिन उनको कमान सौंपी दी जाती है जो केवल कागजों में ज्यादा और धरातल पर कम काम करके अपना समय पूरा करके चलते बनते है                         ** दूसरे क्षेत्रवासियों की पदस्थापना करना** C.B.B.O द्वारा स्थानीय कर्मचारियों को नही लगाकर अन्य अनजान भाषी और अनजान क्षेत्र के युवाओं को पदस्थापित करना जो केवल अपनी तनख्याह के सिवाय कोई सेवा नही कर सकता है जब सरकारी अवधि पूर्ण होते ही संगठन के दस्तावेज  निदेशकों को देकर चले जाते है और संगठन खत्म हो जाता है   **वित्तीय रुकावटें:** सरकारी सहायता देने मे बैंको व अन्य संस्थाओं द्वारा किसान संस्थाओं  के प्रति द्वैषतापूर्ण रवैया अपनाया जाता है। यदि किसान जागरूक और सक्षम हो गया तो अपनी उपज की कीमत खुद तय करने लग जायेगा               ** कृषि विभाग का असहयोग :** कृषि विभाग के पोर्टल द्वारा योजनाओं की जानकारी संगठन को नही होने के कारण उनका ई- मित्र द्वारा अधुरा दस्तावेज पूर्ण नही हो पाता है और आवेदन व सत्यापन खारीज कर दिये जाते है अनपढ़ किसान योजनाओं से दूर होकर ठगा महसुस करता है। ** किसानों के प्रशिक्षण अभाव :** सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं और सुविधाओं का प्रशिक्षण एवं जानकारी बड़े किसानों एवं मिलिभक्ति के लोग तक सीमित रहना हैl

=> सुधार की आवश्यकता :           

 **स्थानीय C.B.B.O का चयन करना जो वाकई किसान सेवा करता है            **C.B.B.O द्वारा  स्थानीय युवाओं को रोजगर देना चाहिए ‘जिससे  किसानो का विश्वास बना रहे और लम्बे समय तक इसका संचालन हो सके l                    **  किसान उत्पादक संघठन का मुख्य उद्देश्य कम्पनी से कम्पनी व्यापार करने के लिए संवैधानिक संस्था है  लेकिन खाद,बीज,दवाईयो की निर्माता कम्पनीयां इनको  खरीद प्रमाण- पत्र उपलब्ध नही करने से कृषि विभाग के नियमो की पालना नही होने के कारण किसान की मांग अनुसार सामान देना मुश्किल हो जाता है  अत: सरकार को निर्माता कम्पनी को उस ब्लाक में सामान बचने की अनुमति देने से पहले किसान उत्पादक संघठन (एफ पीओ) को खरीद-पत्र (पि सी )  देने के लिए पाबंद करे और जो कम्पनी एफ पी ओ को डीलरशिप नही दे उनका उस ब्लॉक् में सामान बेचने की अनुमति रदद् करनी होगी क्योकि वो किसान हितैषी नही है l                                              ** नए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) की मोनेटरिंग में पुराने नजदीकी किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के मुख्यकार्यकारी अधिकारी या निदेशक जो अधिक जानकर हो उसको शामिल करना चाहिए ताकि कमजोरियाँ दूर हो सके l       **  किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) से कृषि उपज मंडी  समिति द्वारा  मंडी टेक्स  वसुलना बंद हो ताकि टेक्स से किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के खर्चे निकल सके ,क्योकि किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) व्यापार  अपने सेन्टर पर करता है उसका किराया और सुविधाओं में खर्चे खुद करता है अगर कृषि उपज मंडी समिति परिसर में व्यापार करे तो मंडी टेक्स लेना वाजिब है अर्थात  सरकार द्वारा किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) से मंडी  टेक्स बंद करना आवश्यक है  

=>निष्कर्ष:

                किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) भारत के कृषि क्षेत्र में सामूहिकता, नवाचार, और सशक्तिकरण का प्रतीक हैं। सही समूह, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता के माध्यम से केवल किसानों की आय बढ़ाने में मदद नहीं की जा सकती, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है और भारत की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने में भी योगदान दिया जा सकता है।

       **” कृषि उत्पाद की लागत कम करके किसानों की आय बढ़ाना किसान उत्पादक संगठन का मुख्य उद्देश्य है ।”**

“केवल किसानों की आय बढ़ाने का ज़रिया नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण भारत के विकास का मजबूत आधार भी है।”

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